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Tuesday 9 December 2014

नदियों पर प्रदूषण के बाद अतिक्रमण की मार

विशेषज्ञों ने की सख्ती से नदी क्षेत्र में अतिक्रमण रोकने की सिफारिश

जौनपुर। नदियों को प्रदूषण मुक्त करने और नदी के खादर में अतिक्रमण रोकने के लिए कानून को प्राथमिकता के आधार पर सख्ती से लागू किया जाए। नदियों के प्रदूषण से आर्थिक और स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभाव का सर्वे कराया जाए। यह सिफारिश पिछले दिनों नदियों के संरक्षण के लिए दिल्ली में आए देशभर के 125 पर्यावरणविदों ने की है। पर्यावरणविदों के इस सुझाव को इंडियन रिवर चार्टर में शामिल किया गया है।
नदी का स्वरूप केवल उसमें बहता पानी नहीं है, बल्कि उसके आसपास का परिस्थितिक तंत्र सहित कई महत्वपूर्ण विषय नदी क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। वास्तव में नदियों पर आया संकट का यह महत्वपूर्ण कारण बन रहा है।
चार्टर में नदी विशेषज्ञों ने सिफारिश की है कि नदियों की स्थिति पर सालाना चार्ट प्रस्तुत किए जाएं, ताकि नदियों के बारे में पता चले कि कौन नदी कितनी प्रदूषित हो गई है अथवा किस नदी का पानी कितना स्वच्छ है। इस बाबत सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को सालाना रिपोर्ट प्रस्तुत करना अनिवार्य करना चाहिए। रिपोर्ट में नदियों की रेड लिस्ट भी जारी करनी चाहिए। साथ ही नदियों के स्वास्थ्य चार्ट में केवल पानी की गुणवत्ता को शामिल किया जाए, बल्कि नदी की आसपास के इकोसिस्टम (पारिस्थितिक तंत्र) को भी शामिल किया जाए। इसके अलावा नदियों की देखरेख स्थानीय स्तर पर किया जाना चाहिए, ताकि स्थानीय निकायों भी इस बाबत जवाबदेह हो सके। जनपद की जीवनदायिनी आदि गंगा गोमती और इसकी पांच सहायक नदियां पूरे जनपदवासियो को पूरे वर्ष जल उपलब्ध कराती रही हैं। लेकिन बढ़ते प्रदूषण और अतिक्रमण के प्रति  उदासीनता के कारण ये सभी नदियां दिनों दिन जहरीली होती जा रही है। और अतिक्रमण इनके स्वच्छंद बहाव में नियमित रूकावट बन रहा है। आधुनिकीकरण और कब्जे की प्रवृत्ति नगरों के घाट और उसके आस पास की बेशकमती जमीनों पर  भारी पड़ रही है। योजनाबद्घ तरीके से इन जमीनों पर हुए कब्जे न केवल नदी की सूरत और इको सिस्टम को बिगाड़ रहे है बल्कि आने वाले समय में कई और दिक्कते पैदा करने वाले है। इस संबंध में मै इंडियन रिवर्स वीक के आयोजक मनोज मिश्रा का कथन उद्घत करना चाहता हूं कि नदी को समझे बगैर इसे पुनर्जीवित करना काफी मुश्किल है।

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