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Sunday 26 May 2019

हज़रत अली की शहादत पर निकला अलम व ताबूत

हजरत अली की शहादत पर निकला अलम, ताबूत का जुलूस
इमामबाड़े में तुर्बत को किया गया सुपुर्द ए खाक
जौनपुर। पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद साहब के दामाद मौला हजरत अली की शहादत के मौके पर रविवार को जनपद के विभिन्न इलाकों में शबीहे ताबूत व अलम का जुलूस निकाला गया। इस दौरान रोजेदारों द्वारा नौहा मातम करते हुए मौला अली की याद में नौहा मातम करते हुए पुरसा दिया। हर तरफ बस यही नौहा सुनाई पड़ रहा था कि एक शोर था मस्जिद में खालिक की दोहाई है सजदे में नमाज़ी को तलवार लगायी है... इब्ने मुलजिम ने हैदर को मारा रोजेदारों कयामत का दिन है...। इन्हीं नौहों के साथ लोग अपने इमाम की याद में डूबे रहे। शाही किला स्थित मद्दू के इमामबाड़े में अंजुमन हुसैनिया के नेतृत्व में एक मजलिस हुई जिसको मौलाना कैसर अब्बास साहब आजमगढ़ ने खेताब किया। मजलिस के बाद अंजुमन हुसैनिया के नेतृत्व में तुर्बत का जुलूस निकाला गया जो शाही किला होता हुआ नगर के चहारसू चौराहा पहुंचा जहां मास्टर मोहम्मद हसन नसीम ने तकरीर किया। यहां अलम व तुर्बत का जुलूस का मिलन हुआ जिसको देखकर लोगों की आंखों से आंसू छलक उठे। जुलूस अपने कदीमी रास्तों से होता हुआ शाह के पंजे इमामबाड़े में रोजा इफ्तार के बाद तुर्बत को सुपुर्द ए आब कर हजरत अली को नजराने अकीदत पेश किया।
नगर के मोहल्ला अजमेरी की मस्जिद शाह अता हुसैन व बलुआघाट में मजलिसे आयोजित हुई जिसके बाद शबीहे ताबूत व अलम बरामद हुआ। शाम करीब पांच बजे दोनों जुलूस नगर के चहारसू चौराहे पर पहुंचे जहां अलम को तुर्बत से मिलाया गया और दोनों जुलूस एक साथ शाह पंजा स्थित कदम रसूल के लिए रवाना हुआ। जहां बाद नमाज मगरिब नौहा शिया जामा मस्जिद के पेश इमाम मौलाना महफुजुल हसन खां ने अदा करायी जिसके बाद मातम के साथ जुलूस का एख्तेताम किया गया। इसके पूर्व अजमेरी मोहल्ला में मजलिस  को मौलाना सैय्यद सफदर हुसैन जैदी सरबराह जामिया जाफरे सादिक ने संबोधित करते हुए कहा कि हजरत अली का पूरा जीवन गरीबों, यतिमों, विधवाओं के प्रति समर्पित था। वो यतिमों की इस प्रकार मदद करते थे कि उन्हें पता भी नहीं चलता था कि मदद करने वाला कौन है? हजरत अली ने इस्लाम की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। मजलिस के बाद जुलूसे अलम व ताजिया,तुर्बत निकाला गया। नवाब युसूफ रोड पर एक तकरीर की गयी जिसे मौलाना सफदर हुसैन जैदी ने संबोधित किया। उसके बाद जुलूस अंजुमन कौसरिया रिजवी खां के हमराह आगे बढ़ा। कोतवाली चौराहे पर अंजुमन जाफरी ने नौहों मातम किया।वही अंजुमन जुल्फिकारया ने नौहा मातम किया,दूसरी तकरीर चहारसू चौराहे पर मोहम्मद हसन नसीम ने किया   वही बलुआघाट के इमामबाड़ा मद्दू मे मजलिस को मौलाना कैसर अब्बास आज़मगढ़ ने पढ़ा ।यहा से अंजुमन हुसैनिया के हमराह एक जुलूस किला होता हुआ इस जुलूस में आकर मिलाया गया। चहारसू पर मोहम्मद हसन ने तकरीर करते हुए कहा कि हजरत अली ने ऐसी न्यान व्यवस्था अपने शासनकाल में बनायी जो आज भी मिसाल के तौर पर प्रस्तुत की जाती है। उनकी हुकूमत में अल्पसंख्यकों के हित पूरी तरह से सुरक्षित थे उनके द्वारा बनाये गये चार्टर मानवधिकार के विश्वस्तरीय संगठनों के लिए आदर्श है। जुलूस चहारसू मातमी अंजुमनों के हमराह ओलंदगंज, शाहीपुल से अपने कदीम रास्ते से होते हुए पंजे शरीफ  दरगाह तक गया जहां पर जुलूस की समाप्ति नमाजे मगरबैन को बजमात अदा करने से हुई। जुलूस का संचालन मेंहदी रजा एडवोकेट ने किया।
वही शनिवार की रात शहर के पानदरीबा मोहल्ला स्थित शाही चार अंगुल की मस्जिद से मोहम्मद साहब के उतराधिकार हज़रत अली की शहादत के मौके पर वर्षों पुराना आलम और ताबूत का जुलूस बरामद हुआ। इस जुलूस में शाहरन की कई अंजुमनों ने नौहखानी और सीनाजनी करके हज़रत अली को खिराजे अकीदत पेश किया। 
इससे पहले मगरिब की नमाज़ मौलाना वसी हैदर ने बज़मात अदा कराई। उसके बाद जुलूस की मजलिस का शुरूआत सोज़खनी से मोहहमद जाफ़र और उनके साथियों ने किया। पेशखानी हसनैन और ज़मीर जौनपुरी ने की। मजलिस को खेताब करते हुये मौलाना वासी हैदर ने कहा कि मौला अली की विलादत काबे में हुई और शहादत मस्जिद में। इस साल उनकी शहादत को 1400 साल हो गए हैं। उन्होंने कहा कि हज़रत अली ख़ुद भूखे रहते थे लेकिन गरीबों को का पेट भरते थे। उनके जैसी शख्सियत दुनिया में कोई दूसरी नहीं है। उन्होंने इस्लाम को परवान चढ़ाने के लिए बहुत सी जंग की। उन्हें धोखे से नमाज़ की हालत से मस्जिद में शहीद कर दिया गया। मौलाना ने जब मसाएब पढ़ना शुरू किया तो वहां मौजूद सभी की आंखे नम हो गयी। फिर शबीहे अलम और ताबूत बरामद हुई। मोनीन ने ज़ियारत की। अंजुमन जुल्फेकरिया, गुलशने इस्लाम और शमशीरे हैदरी के साथ जुलूस अकबर के इमामबाड़े में जाकर खत्म हुआ। जुलूस में बनिये जुलूस जफर अली और हसन अली समेत सैकड़ो लोग मौजूद रहे।