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Wednesday 11 November 2015

पटके जलने में बाटे सावधानियां

जौनपुर। दिवाली का याल जेहन में आते ही हर तरफ रोशनी और कानों में पटाखों की आवाज गूंजने लगती है लेकिन रोशनी के इस त्योहार के दौरान जलाए गए पटाखे अपने साथ प्रदूषण भी लेकर आते हैं। प्रदूषण से न सिर्फ हमारी सुनने की क्षमता प्रभावित होती है बल्कि हमारे आस-पास की हवा में घुलकर सांस के जरिए शरीर के भीतर भी पहुंचता है। इससे अनजाने में ही हम बहुत सारी दिक्कतों के शिकार हो जाते हैं। डॉ टर्स के अनुसार दिवाली में खलल न पड़े इसलिए आतिशबाजी संभल कर करें। थोड़ी सी लापरवाही आपको अस्पताल पहुंचा सकती है। डॉ टर अमित गुप्ता के अनुसार सबसे खतरनाक पटाखा अनार है। हर साल इससे जलकर सैकड़ों लोग अस्पताल पहुंचते हैं। वहीं 13 प्रतिशत बम, नौ प्रतिशत चकरी, आठ प्रतिशत रॉकेट, तीन प्रतिशत पेंसिल पटाखा और तीन प्रतिशत लोग ही कैंडल से जलकर अस्पताल पहुंचते हैं। आतिशबाजी में घायल होकर आने वालों में ज्यादातर लोगों का चेहरा और हथेली जला होता है ल्ल पटाखों का इस्तेमाल कम से कम करें। इससे शोर और अन्य प्रदूषण कम होंगे।

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