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Wednesday 11 November 2015

रंग-बिरंगी झालरों के साथ मनाई गई दीपावली

जौनपुर। दिपावली के पावन पर्व पर नगर से लेकर ग्रामीणांचल तक बड़े उत्साह के साथ सांयकाल से तैयारिया शुरू हुई। निर्धारित समय पर अपने अपने घरो में लक्ष्मी जी का पूजा पाठ तथा हवन व प्रसाद वितरण किया गया। नगरीय क्षेत्र में मकानो पर झालर तथा फूल के माला से सजाया गया था और मिट्टी के द्वीप में सरसो या तिल्ली का तेल से जलाया गया। कही कही पर देशी घी से दीप जलाया गया। कार्तिक माह से अमवस्या के दिन ते्रता युग से दिपावली कर पर्व मनाये जाने के बाद सामने आई। किदवंती है कि भगवान रामचन्द्र लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद जब अयोध्या पहुंचे है तो दूसरे दिन अमवस्या दिन था और विजय के रूप और आगवानी में दीप जलाकर मर्यादा पुरूषो ाम रामचन्द्र का स्वागत जनता ने किया था। धार्मिक रूप से इस दिन दीप जलाकर लक्ष्मी जी का पूजन करने से धन-धान की बढ़ौतरी होती है जबकि गैर प्रांत पश्चिम बंगाल में इसी तिथि में महा काली का पूजा किया जाता है। लक्ष्मी पूजन के बाद मध्यरात्रि में तांत्रिको द्वारा पूजा पाठ कर अपने मंत्रो को जागृत करते है ऐसी धारणा है। दिपावली के दिन सामान्य जन से लेकर विशिष्ट जन तक किसी किसी न किसी रूप में अपने अपने देवी का पूजा पाठ कर प्रसन्न करने का एक असफल प्रयास किया जाता है जहा विद्यार्थी पठन कर सरस्वती को प्रथम दृष्टि में रखते है वही पर व्यवसायी लक्ष्मी जी की पूजा कर उन्हें प्रसन्न करते है। एक प्रकार से कहा जाये तो दिपावली का पर्व रोशनी का पर्व है और यह वह रोशनी है जो जिन्दगी में जगमगाती रही। इस पर्व के पिछे एक लंबा सा इतिहास है जिससे घर की साफ सफाई से लेकर नववस्त्र व नये बर्तन तक खरीद लिया जाता है और घर की गंदगियों की सफाई हो जाती है। धार्मिक रूप से देखा जाये तो जगह जगह हवन होने से वातावरण शुद्घ होता है और इसका वैज्ञानिक पहलू यह है कि साफ सफाई होने से कीड़े मकोड़े खत्म हो जाते है। वैज्ञानिक यह भी पहलू है कि सूर्य की परीक्रमा करते हुए पृथ्वी कुछ खास पड़ाव से होकर गुजरती है। जिसमें दो संक्रातिया और सपात आते है। सौर चन्द्र कलेन्डर के हिसाब से यह साल का तीसरा पड़ाव है सपात के बाद दिपावली पहली अमवस्या होती है। जगह जगह जहा दीप सजाया गया वही पर पटाखो की आवाज गुजती रही। सांय काल से लेकर रात्रि तक पुरा नगर जगमगाता रहा और इसी रात्रि में अराजकत्वो ने भी अपनी दिपावली मनाने की चकर में पूरी रात्रि जागते रहे और मंचले भी दाया बाया देख रहे थे कि कही से दिपावली मन जाये। इस तिथि में प्रेमी और प्रेमिका नही मिल पाये तो जमकर मोबाइल वार्ता शुरू रही। इस प्रकार देखा जाये तो गरीब से लेकर अमीर, छोटे से लेकर बड़े,साधक से लेकर संत, और सज्जन से लेकर दुर्जन तक दिपावली का लु त उठाये।

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