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Saturday 6 December 2014

खौफ के इस शहर में

डीएम, कप्तान जैसे अफसरान हैं।

हां, जो नहीं है, वह है आम शहरियों में सुकून

जौनपुर। हममें से ज्यादातर लोगों को यह नहीं पता कि नाइजीरिया में बोको हराम जैसे खूंखार आतंकी संगठनों के प्रभाव वाले इलाके के निवासी इन दिनों किस भयाक्रांत मनोदशा में जी रहे हैं। इसी प्रकार इराक में इस्लामिक स्टेट के कब्जे वाले क्षेत्र में भी दहशत का शायद हमें पूरा-पूरा अंदाजा नहीं है। मीडिया में जब गाहे-बगाहे छात्रवास से दर्जनों युवतियों के अपहरण या फिर कतार में खड़े कर सामूहिक नरसंहार की खबरें आती हैं तो लगता है कि धरती पर कहीं वाकई नर्क उतर आया है। इन स्थानों पर पुलिस तो है, लेकिन उसका इकबाल मर चुका है। अब सवाल है कि क्या जनपद में भी पुलिस का इकबाल मुर्दा बन चुका है।
पिछले एक सप्ताह के अंदर हुई आपराधिक वारददातें विशेषत: लूट और उसके लिये हत्या तो कुछ इसी ओर इशारा करती है। त्रसदी यह है कि खाकी ने अपने रुतबे को रसातल में भेजने का ताना-बाना खुद ही तैयार किया है। शाहगंज के सर्राफा व्यापारी अमरनाथ सेठ की जिन हालात में हत्या हुई, वे आम शहरियों का रहा-सहा भरोसा तोडऩे वाले हैं। रही सही कसर पूरी कर दी बरसठी बाजार की वारदात ने। जहां हौसला बुलंद बदमाशों ने एक और लूट की सनसनीखेज घटना को अंजाम दिया। असलहे के बल पर आतंकित कर व्यवसायी के दो लाख के आभूषण और 45 हजार रुपये लूट लिए। सूचना पर पुलिस ने तहकीकात तो शुरू  किया लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात। बरसठी बाजार निवासी मनोज सेठ की आभूषण की दुकान दो किलोमीटर दूर मियां चक बाजार में है। वे गुरुवार की रात 7:30 बजे आभूषण से भरा बैग व नकद लेकर घर के लिए चले। लगभग आधा किलोमीटर दूर जाने के बाद पीछे लगे बाइक सवार बदमाश ओवरटेक कर मनोज को रोक लिए। बदमाशों का तेवर देख व्यापारी उनका इरादा भांप लिया। भागने की कोशिश की तो बदमाशों ने कनपटी पर तमंचा तान दिया और दो लाख रुपये मूल्य के आभूषण से भरा झोला व 45 हजार रुपये लूट लिया। यह अकेली वारदात नहीं है जिसे हौसलाबुलंद बदमाशों ने अंजाम दिया।
 ग्रामीण क्षेत्रों की छोडि़ए नगर क्षेत्र में सरेशाम टैम्पो रोककर लूट की वारदात भी अभी तहकीकात के इर्द-गिर्द ही घूम रही है। शहर को याद नहीं आता कि पुलिस ने हाल-फिलहाल किसी बड़ी वारदात का सीना ठोंककर खुलासा किया हो। जो खुलासे हुए भी हैं, वे या तो आधे-अधूरे हैं या फिर रिकार्ड दुरुस्त करने की खानापूरी। उल्टे ऐसे कई मामले हैं, जिनमें यह साफ झलक रहा है कि पुलिस ने जान-बूझकर आंखें मूंद रखी हैं। आज यदि अपराधी पुलिस से बेखौफ हो गए हैं तो उसके पीछे कोई एक वारदात कारण नहीं है। सियासत के चक्रव्यूह में फंसी खाकी का रुतबा इसलिए डूब रहा है, क्योंकि वह खुद बौनी, बहरी और गूंगी बन बैठी है। उप्र पुलिस से अपराधी इस कदर बेखौफ हो चुके हैं कि पीछा करने पर सिपाही को गोली से उड़ा दिया जाता है, कोतवाल को सीधे गोली मार दी जाती है। त्रसदी यह है कि यह सब कुछ तब हो रहा है, जब जिले में कद्दावरों की फौज खड़ी है। सूबे की कैबिनेट में शहर के नुमांइदे हैं।  डीएम, कप्तान जैसे अफसरान हैं। हां, जो नहीं है, वह है आम शहरियों में सुकून और भरोसा।

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