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Thursday 13 September 2018

जौनपुर जनपद निवासी चिकित्सक का अभिनव प्रयोग दे रहा है जीवन दान


कानपुर  । । कहते हैं कोबरा का सगा भाई है 'सल्फास' । यह इसलिए क्यों कि दोनों के ही जहर की कोई काट नहीं । दोनों ही अचूक हैं, अमोघ है , अपने शिकार को अंजाम तक पहुंचाते हैं। वहीं यह भी किदव्न्ती  है कि कोबरा- करेत का काटा पानी मांग सकता है । झाड़ - फूंक, ओझा- सोखा, जड़ी -दवाई से जान बच सकती है, लेकिन सल्फास तो सल्फास है। पेट के अंदर पहुची और खून में घुल गई तो समझो हो गया काम खतम।
 सल्फास के जहर ने यही कारनामा दिखाया कानपुर शहर में। पिछले सप्ताह शहर कानपुर पूर्वी के a s p सुरेंद्र नाथ IPS ने जब इसे अपने गले के नीचे उतारा, तो आनन फानन में उन्हें अस्पताल ले जाया गया ।जिले के अधिकारियों के साथ उस अफसर के बैच मेट कानपुर से लेकर मुंबई सक्रिय हो गए ।सुरेंद्रनाथ की जान बचाने के हर उपक्रम किए गए ।मुंबई से क्रिटिकल केयर विशेषज्ञों की टीम एकमो मशीन के साथ चार्टर प्लेन से कानपुर पहुंची । लगभग 5 दिनों तक जीवन मोत के साथ संघर्ष करने के बाद आखिर सुरेंद्र नाथ को नहीं बचाया जा सका। हाई प्रोफाइल  होने के कारण जब यह मामला सुर्ख़ियों में आया तो एकमो मशीन की चर्चा  होना भी स्वाभाविक ही था। मूलत: यह मशीन हृदय रोग की शल्य चिकित्सा में अहम भूमिका निभाती है। इसके कारण  हृदय और फेफड़ों में कृत्रिम रूप से ऑक्सीजन की नियमितपूर्ति सुनिश्चित रहती है।
 आपको यह जानकर आश्चर्य होगा हृदय शल्य चिकित्सा में प्रयोग होने वाली यही एकमो मशीन पूरी दुनिया में सल्फास से दो दो हाथ कर रही है।
और इसे इस काबिल बनाया है जनपद के निवासी और हीरो दयानंद मेडिकल कॉलेज लुधियाना के हार्ट सेंटर के सीनियर कंसल्टेंट और देश की अग्रणी क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ डॉक्टर विवेक गुप्ता ने। लगभग 5 वर्ष पुर्व शुरू किए गए अपने अनुसंधान के आधार पर उन्होंने इस वेश्किमती मशीन के द्वारा
 सल्फास से निकलने वाली फास्फीन गैस से दिल और फेफड़े पर पडने  वाले दुष्प्रभाव पर काबू कर जीवन रक्षा का मार्ग प्रशस्त किया। साथ ही साथ अनुसंधान कर ऐसे सर्किट का निर्माण किया जिससे इलाज सस्ता हो सके।
 कुल  51 सल्फास प्रभावित रोगियों पर
एकमो प्रोसीजर कर चुके डॉ विवेक गुप्ता अब तक 35 रोगियो को प्राण दान दे चुके है। जो पूरे विश्व में एक चिकित्सा संस्थान द्वारा एक ही विष  पर किसी भी प्रोसीजर द्वारा की गई चिकित्सा का सबसे बड़ा आँकड़ा है।
यह आंकड़ा इसमें भी प्रभावशाली हो जाता हैकि  अब तक संस्थान में सल्फास विष के जो केस पहुन्चे है वह रिफेर  केस थे।
 वस्तुतः सल्फास अथवा फास्फीन गैस के दुष्प्रभाव के केस भारत और भारतीय उपमहाद्वीप में ही मिलते हैं। भारत के अतिरिक्त पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और भूटान आदि में प्रचलित सल्फास गलतफहमी वश या फिर आत्महत्या के उद्देश्य से जब निगल ली जाती है तब इससे निकलने वाली फास्फीन गैस सबसे पहले दिल की पंपिंग क्रिया को कम कर देती है ।जिससे शुद्ध रक्त की सप्लाई बाधित होने लगती है ।परिणाम स्वरुप रक्तचाप घटने लगता है। साथ ही साथ शरीर के विभिन्न अंगों में शुद्ध रक्त न पहुंचने से ऑक्सीजन की कमी होने लगती है और क्रमशा शरीर के अंग काम करना बंद कर देते हैं ।जिससे मरीज की मौत हो जाती है ।अपने देश में ऐसी मामले उत्तर प्रदेश ,पंजाब, हरियाणा, बिहार और गुजरात में मिलते हैं। जबकि  ईरान और दूसरे तेल उत्पादक देशों में फासफ़िन गैस तेल के कुओं से निकल आती है और मनुष्य को अपनी जद में ले लेती है। इस पद्धति की बेहतरीन सफलता को देखते हुए ईरान भी अपने यहां इसका लाभ उठा रहा है

ऐसे काम करती है एकमो

जब भी फासफ़िन  प्रभावित मरीज एकमो प्रोसीजर के तहत इलाज में जाता है ,तो इस मशीन की मदद से मरीज के शरीर के खून में ऑक्सीजन की उचित मात्रा को बनाए रखा जाता है ।यह प्रक्रिया 5 से 6 दिनों तक लगातार क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ की निगरानी में दोहराई जाती है। समय से एकमो सेंटर पर पहुंचे मरीज की प्राण रक्षा में आसानी होती है जबकि देर से आए अथवा अन्य दुसरा इलाज लेकर आय हुए मरीज के बचने की संभावना कम होती है।

 एकमो से क्यों नहीं बचाई जा सकी IPS सुरेंद्र नाथ की जान

लाख कोशिशों के बाद IPS सुरेंद्रनाथ की प्राण रक्षा नहीं की जा सकी। इस मामले पर जो संभावनाएं जताई जा रही हैं। उस पर विशेषज्ञ एकमत नहीं है ।फिर भी जिन दो महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विशेषज्ञ एकमत है उनमें प्रमुख है एकमो प्रोसीजर इस्तेमाल करने का  निर्णय लेने में पर्याप्त देर  हुई। और दूसरा यह निर्णय भी गलत हुआ कि मरीज को एकमो सेंटर भेजने के बजाय व्यवस्थाएं कानपुर मंगवाई जाय । अगर समय रहते एकमो प्रोसीजर से इलाज शुरू हो जाता तो शायद सुरेंद्रनाथ की जान बचाई जा सकती थी।

इलाज आम आदमी के लिए बनाया - डॉ विवेक 

एकमो  का अभिनव प्रयोग कर सल्फास और  फसफ़िन प्रभावित मरीजों को जीवन दान देकर अन्तररास्ट्रीय ख्याति बटोर चुके डॉ विवेक गुप्ता का कहना है कि 5 वर्ष पूर्व जब उन्होंने हार्ट  सेंटर पर काम करते समय एक्मो की क्रिया विधि को समझा तब दिमाग में इसके प्रयोग का आईडिया आया। यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। क्योंकि एकमो मशीन अत्यंत महंगी और सर्व सुलभ नहीं थी ।मैं शुक्रगुजार हूं अपने चिकित्सा संस्थान का जिस दिन मेरी योजना और प्रयोग के लिए अवसर दिया। दूसरा चुनौतीपूर्ण कार्य था
एकमो से होने वाले प्रोसीजर अत्यंत महंगी होती थी। लिहाजा अनुसंधान करते समय  यह भी आवश्यक था  कि यह पद्धति  आमजन को उपलब्ध हो सके । जिस नई सर्किट को बनाया गया उससे एक मरीज पर आने वाला खर्च 5 से 6लाख रुपय में ही सीमित हो गया ।जबकि  सामान्यता  इस मशीन पर इलाज का खर्च देश में  40लाख और विदेशों में इसका खड 50 से 70 लाख के आसपास पड़ता है ।उन्होंने बताया कि वह पूरे देश में इस पद्धति की जानकारियां उपलब्ध कराने के लिए प्रयासरत है।

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