विज्ञापन 1

विज्ञापन 1
1 विज्ञापन

Thursday 30 October 2014

उदीयमान भास्कर को अघ्र्यदान के साथ 
छठ व्रत का पारण



आदि गंगा का विभिन्न घाटों पर श्रद्घालु महिलाओं का उमड़ा सैलाब


जौनपुर। व्रती महिलाओं द्वारा गुरुवार को नदी अथवा सरोवर तट पर पूर्व दिशा में उदीयमान भगवान भास्कर को अघ्र्य अर्पित करने के साथ चतुर्दिवसीय डाला छठ पूजनोत्सव का समापन हो गया। भोर बेला में भगवान सूर्य देव को दुग्ध का अघ्र्य प्रदान करने के लिए आदि गंगा गोमती के घाटों पर महिलाओं के मेले जैसा दृश्य उत्पन्न हो गया था। हिन्दू धर्मावलम्बियों में कार्तिक मास की शुक्लपक्षीय चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक आयोज्यमान डाला छठ पूजनोत्सव वस्तुत: सूर्योपासना से सम्बन्धित पर्व है। हमारश देश में शरद ऋतु के समशीतोष्ण प्राकृतिक परिवेश में डाला छठ के रूप में भगवान भास्कर की उपासना की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। पौराणिक कथाओं के अनुसार स्वदेश में छठ पर्व की शुरूआत महाभारत काल से मानी जाती है। जब पाण्डव कौरवों से धूत क्रीड़ा में अपना राजघाट हार गये तो पांचाली द्रौपदी ने छठ पर्व का उद्यापन किया जिसके फलस्वरूप उसकी मनोकामना पूर्ण हुई तथा पाण्डवों को उनका खोया राजपाट वापस मिल गया। स्वदेश में सूर्यपुत्र कर्ण द्वारा सूर्योपासना की परम्परा की शुरूआत मानी जाती है। उसके द्वारा प्रतिदिन घण्टों पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य को अघ्र्य दान की परम्परा आज भी डाला छठ के रूप में प्रचलित है। छठ में सूर्य के साथ उसकी दोनों पत्नियों ऊषा और प्रत्यूषा की आराधना संयुक्त रूप से की जाती है।
 आज ब्रह्मï मुहूर्त में बड़ी संख्या में श्रद्घालु व्रती महिलायें ऋंगार करकश नवीन परिधान में पारम्परिक लोकगीत का गान करते हुए टोलियों में आदि गंगा गोमती के विभिन्न घाटों पर पहुंची। अनेक महिलायें बाजे गाजे के साथ नदी तट पर गयीं जहां उन्होंने नदी के किनारे जलधारा में खड़ी होकर पूर्व दिशा मे उदीयमान सूर्य को अघ्र्य में दुग्ध अर्पित किया। सूर्यदेव को अघ्र्यदान के पश्चात व्रती महिलाओं ने हाथ में अंकुरित चना लेकर षष्ठी व्रत के माहात्म्य सम्बन्धी धार्मिक कथाओं का कथन और श्रवण किया। तत्पश्चात प्रसाद वितरण किया गया। आज भोर बेला में हनुमान घाट, गोपीघाट, गूलरघाट, अचलाघाट, बजरंग घाट सहित गोमती नदी के विभिन्न घाटों पर महिलाओं ने उगते सूरज को अघ्र्य दान कर व्रत का पारण किया। घाटों पर विभिन्न सामाजिक संस्थाओं द्वारा महिलाओं की अघ्र्यदान व पूजन में सुविधा तथा सुरक्षा हेतु शामियाना की व्यवस्था की गयी थी। ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से डाला छठ के माहात्म्य सम्बन्धी गीत परिवेश में गूंज रहे थे तथा घाटों पर मेले जैसा दृश्य उत्पन्न हो गया था। 

नदी तटवर्ती घाटों पर व्रती महिलाओं के अघ्र्यदान और पूजन का कार्यक्रम देर तक चलता रह। मडिय़ाहूं, मछलीशहर, बदलापुर, शाहगंज, केराकत, मुंगराबादशाहपुर आदि में भी पर्व हर्षोल्लास मनाया गया।


एक अख़बार जिसमे सिमटा सारा संसार

No comments:

Post a Comment