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Monday 1 October 2018

तुम बड़े रेस्टोरेन्ट में बैठे थे, तुम्हें प्लेट सफाचट नही करना चाहिए था..

सचिन समर की कलम से..


तुम बड़े रेस्टोरेन्ट में बैठे थे, तुम्हें प्लेट सफाचट नही करना चाहिए था, तुम्हे सभी सब्जियों को थोड़ा - थोड़ा छोड़ना ही चाहिए था ! जबकि तुम खाना चट करने के साथ ही अपनी अंगुली में लगे चावल को भी सबके सामने ऐसे खा रहे थे कि कभी खाना मिला ही नही हो तुम्हें ! ये तुम्हारे गंवारपन को दिखता है तुम अब बीएचयू के छात्र हो, श्री रेस्त्रां से लौटते हुए मेरे मित्र ने कहा ।

 मुझे उसकी बात सुनकर हँसी आयी लेकिन मैंने कुछ नही बोला ! वह बोलता रहा जब बड़े लेवल पर और बड़े होटलों में जाओगे तो लोग तुम्हे इस तरह खाता देखकर हसेंगे तुम्हारे खाने के अंदाज को जल्द ही सुधारना चाहिए और कहीं बड़े जगह खाना खाओ तो प्लेट में खाना छोड़ोगे तभी बड़े आदमियों में गिनती होगी तुम्हारी । इतना कहना ही था कि मेरा गुस्सा फूट पड़ा "नही बनना हमे बड़ा आदमी तुम्हे पता है विश्व में कितने लोग भूखे मर रहे है विश्व की छोड़ो हमारे इस कृषि प्रधान देश भारत में हर साल हजारों - लाखों को एक साँझ का भोजन मिलना कितना कठिन है, कितने भात- भात कह कर मर जाते है ! कितने कूड़े के ढेर में से बीन - बीन कर खा रहे है ! और तुम प्लेट में खाना छोड़कर अपना बड़प्पन दिखाने के लिए कह रहे हो ! अगर यहाँ पर इस तरह बड़ा आदमी बनना है तो हम छोटे ही ठीक है लेकिन थाली में एक दाना भी नही छोड़ेंगे..!" लेकिन तुम्हारे बीएचयू के दोस्तों ने भी तो प्लेट में ढेर सारा खाना छोड़ा था, उसने दुबारा खुद को सही साबित करने की कोशिश की । मुझे नही पता उन लोगों ने क्यों छोड़ा लेकिन हाँ मैं इतना जरूर जानता हूँ कि उन्हें ऐसा नही करना चाहिए था, अगर वे मेरे पुराने मित्र होते तो मैं इस बात पर उनसे बहस जरूर करता मैंने तो ये भी सोचा था कि उस खाने का पार्सल ले लें तो किसी भूखे का पेट तो भरेगा कम से कम लेकिन ऐसा सम्भव नही हो सका ।  मैंने अपने मित्र को बनारस में चल रहे #रोटी_बैंक के बारे में बताया और साथ ही गूगल कर भुखमरी में भारत का स्थान जानने को कहा... और फिर मैं यादों के उस शहर में खो गया... जो मेरे गांव में बसता है.. कैसे सार्वजनिक भोज में भी लोग नीचे बैठकर चाव से पत्तल पर खाते हैं और अन्न का हर एक दाना इस तरह से निगलते हैं जैसे कुदरत ने उसको इसको इन्हीं के लिए बनाया है...!

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