टांट के पर्दे पर रेशम का पैबंद लगाने की कोशिशें
चौराहों की तस्वीर बदलने के लिए खर्च किए जा रहे1.58 करोड़ रुपये

इतनी महत्वाकांक्षी योजना के ऊपर मेरी उलट कर प्रयोग की गयी कहावत एकदम फिट बैठती है। नगर के जिन-जिन चौराहों के निर्माण सौन्दर्यीकरण के लिए यह महत्वाकंाक्षी योजनाएं लायी गयी है उनसे जुड़ी सड़कों की दयनीय हालत की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है। वैसे तो नगर या यूं कहें कि जनपद की सड़के बेहतद खस्ताहाल हैं वाहन और वाहन चालक दोनों इन खस्ताहाल सड़कों पर चलने में हाफने लगते है। सड़क के किनारे रहने वाले निवासी और दुकानदार धूंल से पैदा होने वाली श्वास संबंधी बीमारियों की गिरफ्तार में आ जाते हैं लेकिन प्रशासन और संंबंधित विभाग सन्नाटा खीचें हुए है लेकिन जिन चौराहों की सौन्दर्यीकरण की योजना चल रही है उनसे जुड़ी सड़कें अत्यन्त दयनीय स्थिति में है। पालिटेक् िनक चौराहे से नईगंज और वाजिदपुर तिराहे दोनों तरफ सड़कों पर कहीं कहीं एक एक फिट तक के गहरे गड्ïढ़े है।
जिनमें वाहन प्राय: फंसकर क्षतिग्रस्त हो जाती है। दुर्घटनाएं तो रोज का काम है। यह हफ्ते पन्द्रह दिन का मामला नहीं है। एक लम्बे समय से वाराणसी-लखनऊ राजमार्ग पर स्थित इन चौराहों के नजदीक की सड़कें ऐसी ही बनी हुयी है। लिहाजा यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि प्रशासन टांट के पर्दे पर रेशम का पैबंद लगाने की कोशिश कर रहा है।
होता है तब हम इस कहावत का प्रयोग करते हैं लेकिन आज मेरी इच्छा हो रही है कि इस कहावत को उलट कर प्रयोग करें यानि टांट के पर्दें में रेशम का पेबंद। जी हां नगर के प्रमुख चौराहे चमकने जा रहे हैं। सामाजिक संस्थाओं की अगुवाई में चौराहों को नया लुक दिए जाने का काम युद्धस्तर पर चल रहा है। इसके अलावा तस्वीर बदलने के लिए जिला प्रशासन ने 1.85 करोड़ रुपये खर्च करने का निर्णय लिया है।
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